म्यांमार में 2021 के सैन्य तख्तापलट को चार साल हो चुके हैं, और जुंटा ने पांचवें वर्ष में चुनाव कराने की घोषणा की है। हालांकि, यह घोषणा संदेह और विरोध का कारण बनी है। विपक्षी गुटों ने चुनावों को अस्वीकार करते हुए इसमें भाग लेने वालों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। तख्तापलट के बाद सैन्य सरकार ने कई राजनीतिक दलों, विशेष रूप से नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को अवैध घोषित कर दिया था । देश में गृहयुद्ध का दायरा बढ़ता जा रहा है और भविष्य में भी अस्थिरता बनी रहने की आशंका है। जुंटा अपनी वैधता बनाए रखने के लिए चुनावों का सहारा लेने की कोशिश कर रहा है, जबकि आशंका है कि इससे हिंसा और अस्थिरता बढ़ सकती है।
म्यांमार में फरवरी 2021 में हुआ सैन्य तख्तापलट अब अपने पांचवें साल में प्रवेश कर चुका है। इन चार सालों के दौरान देश गहरे राजनीतिक संकट, गृहयुद्ध और आर्थिक गिरावट के दौर से गुज़रा है, जो अभी भी जारी है। इस तख्तापलट ने एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को हटा दिया था जिसके बाद म्यांमार के आधुनिक इतिहास में सबसे लंबे और हिंसक प्रतिरोध आंदोलनों में से एक शुरू हो गया। सैन्य जुंटा की निरंतर दमनकारी नीतियां, व्यापक मानवाधिकार उल्लंघन, मनमानी गिरफ्तारियां और विरोधियों पर कड़ी कार्रवाईयों ने नागरिक आबादी को और अधिक अलग-थलग कर दिया है। सशस्त्र प्रतिरोध का नेतृत्व पीपुल्स डिफेंस फोर्सेस (People’s Defence Force [PDFs]) और जातीय सशस्त्र समूह (Ethnic Armed Organizations [EAOs]) कर रहे हैं और अब तक देश का एक बड़ा हिस्सा उनके नियंत्रण में आ चुका है। देश की यह अस्थिरता, म्यांमार की सीमाओं से परे भी फैल चुकी है, विशेष रूप से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में, जहाँ शरणार्थियों की आमद और सीमा पार से होने वाली अवैध गतिविधियां तेज़ हो गई।
म्यांमार का गृहयुद्ध भारत के उत्तरपूर्वी क्षेत्र पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है, जिससे सुरक्षा, आर्थिक हितों और क्षेत्रीय स्थिरता पर असर पड़ा है। इस संघर्ष के कारण मणिपुर और मिजोरम में बड़ी संख्या में शरणार्थी प्रवेश कर रहे हैं, जिससे जातीय तनाव बढ़ता दिखता है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक फरवरी 2021 के बाद से 54 हज़ार से ज्यादा लोग म्यांमार से भारत की सीमा में आए हैं, उसमें भी सबसे ज्यादा मणिपुर और मिज़ोरम में सबसे ज्यादा शरणार्थी आए हैं।[1] म्यांमार में अस्थिरता ने भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” के तहत महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं जैसे ‘कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर’ और ‘भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग’ की प्रगति को बाधित भी किया है।[2] संकेत इस बात के हैं कि म्यांमार स्थित उग्रवादी/जुंटा विरोधी समूह इस अशांति का लाभ उठाकर भारत के उत्तरपूर्वी क्षेत्र में नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं।[3] आशंका इस बात की भी है कि भारत विरोधी ताकतें इस स्थिति का फायदा उठाकर भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों में फिर से उग्रवाद को भड़का सकता है,[4] जिससे सुरक्षा चुनौतियाँ और जटिल हो सकती हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों, पूंजी पलायन, और आपूर्ति श्रृंखलाओं के बाधित होने से उत्पन्न आर्थिक संकट ने गरीबी और असंतोष को और बढ़ा दिया है, जिससे सैन्य शासन की पकड़ कमजोर होती गई है। आसियान और पड़ोसी देशों के कूटनीतिक प्रयासों के बावजूद, सेना राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत नहीं कर पाई है। मौजूदा स्थिति की बात करें तो यह संघर्ष एक गतिरोध की स्थिति तक पहुंच गया है। जहां न तो जुंटा और न ही प्रतिरोधी बल कोई निर्णायक बढ़त हासिल कर सके हैं। इससे दीर्घकालिक अस्थिरता, मानवीय संकट और म्यांमार के राजनीतिक भविष्य को लेकर गंभीर चिंताए मौजूदा समय का सच है।
देश में चुनाव कराने का वादा जुंटा ने साल 2024 में ही किया था, जिसे चीन का समर्थन प्राप्त है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि चुनाव किस तरह कराए जाएंगे, क्योंकि देश के बड़े हिस्से पर विद्रोही गुटों का कब्ज़ा है।[5] विशेषज्ञों का मानना है कि सेना को मतदान कराने के लिए अत्यधिक हिंसा का सहारा लेना पड़ेगा, जिससे संघर्ष और भड़क सकता है। पिछले काफी समय से जारी संघर्ष ने म्यांमार की स्थानीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। व्यापार मार्ग बंद होने की वजह से खाद्य और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें दोगुनी तक पहुंची। पेट्रोल की कीमत 7,500 क्यात ($3.60) प्रति लीटर कर हो गई, जबकि चावल की एक बोरी की कीमत 290,000 क्यात ($138) तक भी पहुंच गई।[6] म्यांमार में व्यापक स्तर पर गरीबी बढ़ चुकी है, और आधी आबादी अब गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने को मजबूर है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि रखाइन राज्य में व्यापार मार्गों के बंद होने और खाद्य आपूर्ति में रुकावट के कारण भुखमरी का खतरा बढ़ गया है।[7] स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई है, और सेना द्वारा लागू किए गए अनिवार्य सैन्य भर्ती कानून के कारण बड़ी संख्या में युवा देश छोड़कर भाग रहे हैं।[8] इन सबके बीच विद्रोही समूहों ने महत्वपूर्ण बढ़तबनाई हुई है और आर्थिक संकट एवं मानवीय आपदा इस समय का एक कड़वा सच बन चुका है, ऐसी स्थिति में शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव संपन्न कराने तथा देश में एक स्थिर समावेशी सरकार बनाने की संभावना बहुत कम है।
सितंबर 2024 में, जुंटा ने एक राष्ट्रीय जनसंख्या और घरेलू जनगणना आयोजित करने की घोषणा की ताकि चुनाव करवाया जा सके।[9] सैन्य शासन ने 2025 में चुनाव कराने के अपने इरादे की घोषणा की है। जनगणना के अंतरिम आंकड़ों के अनुसार, 32,191,407 लोगों की सीधे जनगणना की गई जबकि बाकि के 19,125,349 लोगों की गणना रिमोट सेंसिंग तकनीक के ज़रिए की गई, क्योंकि इन इलाकों में सीधे/प्रत्यक्ष गणना संभव नहीं थी।[10] सैन्य सरकार 330 टाउनशिप में से, केवल 145 में ही पूरी तरह जनगणना कर पाई। वहीं एक आकलन यह बताता है कि मतदान 330 में से केवल 160 से 170 टाउनशिप में ही संभव है।[11] सैन्य सरकार की रणनीति चुनाव से पहले इन इलाकों में ‘स्थिरता’ को बहाल करना और पूर्ण सामरिक नियंत्रण हासिल करना है।[12] विशेषज्ञों और पर्यवेक्षकों का मानना है कि जैसे-जैसे जुंटा अपनी पकड़ खो चुके इलाकों को नियंत्रण में लेने के लिए संघर्ष करेगा वैसे-वैसे तनाव और भी बढ़ सकता है।[13] आशंका यह भी है कि अगर विरोधी गुट चुनावों को बाधित करने के लिए मतदान केंद्रों, चुनाव अधिकारियों या उम्मीदवारों पर हमले करते हैं, तो यह हिंसा बेकाबू हो सकती है और देश और अधिक अस्थिर कर सकती है।
PDF, EAOs और दूसरे स्थानीय लड़ाके समूहों ने चेतावनी दी है कि चाहे चुनाव अधिकारी हों या सैन्य समर्थित उम्मीदवार, जो भी व्यक्ति जुंटा की चुनावी प्रक्रिया में सहयोग करेगा, उन्हें “गंभीर परिणाम” भुगतने होंगे। अक्टूबर में जनगणना के दौरान, तानिंथारी क्षेत्र में नौ सरकारी कर्मचारियों, जिनमें अधिकांश शिक्षक थे, को प्रतिरोधी लड़ाकों ने एक महीने से अधिक समय तक बंधक बनाए रखा था।[14] जबकि कुछ प्रतिरोधी समूह स्पष्ट कर चुके हैं कि जो भी चुनाव कराने में सैन्य शासन की मदद करेगा, उसे ‘साजिशकर्ता’ माना जाएगा। जुंटा का दावा है कि चुनाव देश में स्थिरता लाएगा, लेकिन विपक्षी ताकतें इन चुनावों को, सैन्य शासन को वैधता देने के लिए एक दिखावा भर मानती हैं।[15] विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि चुनाव, संघर्षों को हल करने के बजाय अस्थिरता को और बढ़ा सकता है। आसियान (ASEAN) ने चुनावों की बजाय संवाद और शांति स्थापना पर जोर देने का आग्रह किया है।[16] चीन, भारत और रूस ने अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव को लेकर जुंटा को समर्थन दिया है, जबकि पश्चिमी देश, नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (National Unity Government [NUG]) और EAOs इन चुनावों को अवैध मानते हैं।[17] आलोचकों की आशंका है कि चुनावों के पीछे जुंटा का असली उद्देश्य, चुनाव के ओट में अपने वर्चस्व को बनाए रखना है।
म्यांमार के राजनीतिक परिदृश्य में 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद जुंटा ने राजनीतिक दलों की वैधता को लेकर एक बदलाव किया। तख्तापलट के समय म्यांमार में 90 राजनीतिक दल थे लेकिन जुंटा द्वारा राजनीतिक दलों के पंजीकरण कानून में किए गए संशोधनों के कारण, 40 दलों की वैधता को ही भंग कर दिया गया। जिनमें नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (National League for Democracy [NLD]) के साथ-साथ और दूसरे लोकतंत्र समर्थक समूह भी शामिल थे।[18] 2024 के अंत तक केवल 53 राजनीतिक दलों की वैधता ही बची रही या कहें कि केवल 53 दल ही आधिकारिक रूप से पंजीकृत हैं, जिनमें से अधिकांश सैन्य समर्थित राजनीतिक दल हैं।[19]
2023 में, म्यांमार के सैन्य-नियंत्रित यूनियन इलेक्शन कमीशन (UEC) ने एक कड़े नए चुनावी पंजीकरण कानून लागू किए। इन कानूनों के तहत, राजनीतिक दलों को 90 दिनों के भीतर 1,00,000 सदस्य जोड़ने और देश के कम से कम आधे टाउनशिप में कार्यालय खोलने की शर्तें पूरी करनी थीं।[20] यह एक लगभग असंभव सी प्रक्रिया थी। नतीजा यह हुआ कि NLD ने जुंटा के चुनावी प्रक्रिया को अवैध करार देते हुए चुनावों में भाग लेने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि सैन्य शासन ने लोकतांत्रिक आंदोलनों को कुचलने के लिए हिंसक दमन किया है और उनके नेताओं को जेल में डाल दिया है। इसके परिणामस्वरूप, 28 मार्च 2023 को UEC ने औपचारिक रूप से NLD और 39 अन्य राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द कर दिया, यह घोषणा करते हुए कि ये दल “स्वतः अस्तित्वहीन हो गए हैं”।[21]
2021 के तख्तापलट के बाद, विपक्षी राजनीतिक कार्यकर्ताओं और पूर्व सांसदों ने एक ‘निर्वासित सरकार’ नेशनल युनिटी गवर्मेंट (NUG) का गठन किया। NUG ने देश में चल रहे प्रतिरोध गतिविधियों को संगठित किया और स्थानीय अल्पसंख्यक जातीय सशस्त्र संगठनों को एक संगठित ताकत में बदला, जिसे पीपुल्स डिफेंस फोर्सेस (PDFs) कहा जाने लगा।[22] PDF जातीय सशस्त्र संगठनों के साथ संयुक्त कमान प्रणाली के तहत काम करती हैं। जून 2019 में, तीन सशस्त्र समूहों—अराकान आर्मी (AA), म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी (MNDAA), और ता’आंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA)—ने मिलकर एक गठबंधन बनाया, जिसे ‘थ्री ब्रदरहुड अलायंस’ कहा जाता है।[23] यह गठबंधन 2023 में जुंटा (सैन्य शासन) के खिलाफ प्रतिरोध में प्रमुखता से उभरा। 27 अक्टूबर 2023 को, गठबंधन ने उत्तरी शान राज्य में जुंटा के खिलाफ “ऑपरेशन 1027” नामक एक सैन्य अभियान शुरू किया।[24] जातीय समूहों के बीच आंतरिक मतभेद थे लेकिन इसके बाद भी विभिन्न विपक्षी गुट एकजुट हुए। यह सहयोगात्मक प्रयास देश के दो-तिहाई क्षेत्र में फैल गया, जो जुंटा के लिए आने वाले वक्त में बड़ा झटका साबित हुआ और PDF को लड़ाई के मैदान में बड़ी जीत हासिल हुई।[25]
सैन्य असफलताओं के कारण सेना के मनोबल और एकजुटता में कमी आई है, जिसकी वजह से सेना कमजोर तो हुई ही है साथ ही यहां से पलायन में बढ़ोत्तरी हुई है। ऑपरेशन 1027 शुरू होने के तीन सालों के अंदर ही 4,000 से अधिक सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया है या उन्होंने अपनी सेवा छोड़ दी।[26] जनवरी 2025 तक यह संख्या 15,000 से अधिक हो गई है। द आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डेटा प्रोजेक्ट (ACLED) के अनुसार, 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद से पहले तीन सालों में म्यांमार में कम से कम 50,000 लोगों की मौत हुई है, जिसमें कम से कम 8,000 नागरिक शामिल हैं।[27] इस बीच, म्यांमार में राजनीतिक कैदियों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है।[28] 2021 के तख्तापलट के बाद से, म्यांमार की सैन्य जुंटा की कार्रवाइयों में 6,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई और 20,000 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया और न्यायिक फांसी की कार्यवाही को फिर से शुरू किया गया है।[29] इस गृहयुद्ध की वजह से कम से कम 35 लाख से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं, जबकि लाखों की संख्या में दूसरे देशों में भी लोगों का पलायन हुआ है, जिसमें मुख्यरूप से थाईलैंड, मलेशिया, भारत, बांग्लादेश हैं।[30] भारत में, फरवरी 2021 से म्यांमार के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के लगभग 60,000 लोगों ने शरण ली है।[31]
ऑपरेशन 1027 के एक साल बाद, यह गठबंधन और अन्य “प्रतिरोध बलों” ने म्यांमार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (60 प्रतिशत से अधिक)[32] अपने नियंत्रण में ले लिया है। यह स्पष्ट है कि 2021 के तख्तापलट के बाद से म्यांमार में सशस्त्र विरोध काफी मुखर और व्यापक हो गया, जबकि जुंटा की सेनाएँ कमजोर होती गईं। आधिकारिक सैनिकों की संख्या 130,000 और सहायक बलों की संख्या 70,000 तक कम हो गई।[33] शान राज्य के प्रमुख सामरिक क्षेत्रों के साथ-साथ सशस्त्र जातीय बलों ने रखाइन, चिन, करेन, सगाइंग, मगवे जैसे राज्यों के एक बड़े हिस्से पर भी नियंत्रण कर लिया। जबकि कचिन राज्य में कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी ने कई सैन्य मोर्चों पर कब्जा करने में सफलता पाई। दिसंबर 2024 में विद्रोहियों का आक्रमण म्यांमार के मध्य भाग में आगे बढ़ना शुरु हो गया, जिससे मांडले क्षेत्र में सेना पर दबाव बढ़ता जा रहा था।[34] म्यांमार पीस मॉनिटर के अनुसार, अब तक (जनवरी 2025 तक) 95 शहर जुंटा के हाथ से निकल चुके हैं।[35] कचिन राज्य के उत्तर में 200 से अधिक सैन्य ठिकाने और कई महत्वपूर्ण शहर सेना खो चुकी है, जिनमें दुर्लभ खनिजों के खनन वाले केंद्र भी शामिल हैं। पश्चिम में लगभग पूरा रखाइन राज्य जुंटा के नियंत्रण से बाहर हो चुका है, जबकि केंद्रीय सगाइंग क्षेत्र में भी सेना को कई महत्वपूर्ण ठिकानों से हाथ धोना पड़ा है।[36] हालांकि सेना अब भी हवाई हमलों और दमन के ज़रिए नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश कर रही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उसकी शक्ति सीमित हो रही है। संयुक्त राज्य शांति संस्थान (USIP) के अनुसार, 2025 तक जुंटा की स्थिति और भी कमजोर हो जाएगी, और विरोधी गुटों के बीच अधिक समन्वय बनेगा जिससे सेना और अधिक क्षेत्र खो सकती है।[37]
जुंटा विरोधी हथियारबंद समूह, जो पहले बिखरे थे, अब एक सुनियोजित तरीके से सेना के खिलाफ अपने अभियान को अंजाम दे रहे हैं, हालांकि उनमें विधारधारा, संघीय लोकतंत्र की अवधारणा को लेकर कुछ विरोधाभास मौजूद है। लेकिन तख्तापलट के बाद ज्यादातर समूह एक मंच पर आए, जिससे सेना के लिए पलटवार करना और कठिन हो गया है। म्यांमार की सेना को सैनिकों की कमी का भी सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि कई सैनिक युद्ध में मारे जा रहे हैं, फरार हो रहे हैं या विरोधी पक्ष में शामिल हो रहे हैं। जबरदस्ती लोगों को सेना में भर्ती करने के प्रयास भी इन नुकसानों की भरपाई नहीं कर पा रहे हैं।
गृहयुद्ध को प्रभावित करने वाले कारकों में चीन सबसे प्रभावशाली है, मुख्य रूप से अपने आर्थिक और सुरक्षा हितों के कारण। शुरुआत में, चीन ने सैन्य सरकार का समर्थन किया था, लेकिन हाल के कदमों से एक अधिक व्यवहारिक दृष्टिकोण की ओर बदलाव दिखता है।[38] उदाहरण के लिए, चीन ने MNDAA और TNLA जैसे स्थानीय सशस्त्र समूहों पर युद्धविराम समझौतों के लिए दबाव डाला है। उसने अस्थायी रूप से विद्रोही समूहों को हथियारों की आपूर्ति तंत्र पर दबाव बना दिया है, लेकिन कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) द्वारा दुर्लभ खनिज खानों पर नियंत्रण करने के बाद इस दबाव में थोड़ी कमी भी देखी गई।[39] इसके अलावा, चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजनाओं के लिए म्यांमार में स्थिरता बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जबकि म्यांमार में विभिन्न गुटों के साथ अपने विकल्प खुले रख रहा है।[40]
म्यांमार एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां उसका राजनीतिक भविष्य कई दिशाओं की ओर रुख कर सकता है। एक संभावित परिणाम यह हो सकता है कि देश विभाजित हो जाए और केंद्रीय शक्ति कमज़ोर हो जाए। इस परिस्थिति में रखाइन, कचिन और शान जैसे जातीय समूह अपने प्रभाव वाले और जीते हुए क्षेत्रों में अपनी पकड़ मज़बूत करें और केंद्रीय सत्ता के ख़िलाफ अधिक से अधिक स्वायतत्ता के लिए ज़ोर डालें। संकेत यह भी है कि सैन्य सरकार म्यांमार के भौगोलिक रूप से मध्यवर्ती इलाकों पर नियंत्रण बनाए रख सकती है। सेना अपनी वैधता के लिए चुनाव की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी। संकेत इस बात के भी हैं कि घोषित चुनावों का नकारात्मक असर लोकतंत्र समर्थकों के अभियान की नैतिकता और वैधानिकता पर हो सकता है। जिससे जुंटा की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, विशेषकर आसियान के सामने बेहतर हो सकती है।
मौजूदा गृहयुद्ध के बावजूद, चीन जैसे देश शांतिपूर्ण समाधान के लिए सारे पक्षों पर दबाव बना सकते हैं। यह तब संभव हो सकता है जब वर्तमान जुंटा का नेतृत्व और सैन्य नेतृत्व वाले ‘राज्य प्रशासनिक परिषद’ (SAC), के बदले नई सैन्य सरकार आ जाए और राजनीतिक वार्ता के लिए तैयार हो, या फिर यदि चीन द्वारा आयोजित वार्ताओं के माध्यम से प्रमुख विद्रोही समूहों के बीच संघर्षविराम पर सहमति बन जाए। हालांकि, म्यांमार के संघर्ष में एक बड़ी चुनौती विभिन्न प्रतिरोधी समूहों के बीच लक्ष्यों का विरोधाभास भी है। जातीय सशस्त्र संगठन (EAOs) पहले अपने क्षेत्रों के लिए स्वशासन चाहते हैं, राष्ट्रीय राजनीतिक प्रणाली में शामिल होने से पहले स्थानीय नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित करने की ओर बढ़ेंगे, वहीं NLD और NUG पहले लोकतंत्र की बहाली को प्राथमिकता देते रहे हैं और संघवाद को दूसरा यानी ग़ैर-प्राथमिक लक्ष्य मानते रहे हैं।[41] इस वैचारिक विरोधाभास के कारण प्रतिरोधी समूहों का एकजुट होना मुश्किल होता रहा है, जो आगे भी दीर्घकालिक शांति और स्थिरता प्राप्त करने में एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी।
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[1] “ACAPS Briefing Note: India – Myanmar Refugees (28 July 2023)“, United Nations Office for the Coordination of Humanitarian Affairs, 31 July 2023.
[2] Rupakjyoti Borah, “The Ethnic Fighting in Myanmar and Impact on Northeast India“, Center for the Advanced Study of India, 17 February 2025.
[3] Asia & the Pacific Programme, “India: Immediately Halt Forced Returns of Myanmar Refugees in Manipur and Respect the Non-Refoulement Principle“, International Commission of Jurists, 10 May 2024.
[4] Leivon Victor Lamkang, “2021 Military Coup in Myanmar and Its Impact along the India-Myanmar Border Region“, Indian Council of World Affairs, 7 February 2025.
[5] “Myanmar Junta Losing Ground to Rebel Forces As Civil War Enters 5th Year“, Firstpost, 31 January 2025.
[6] Rebecca Ratcliffe, “Four Years After the Coup, Chaos Reigns As Myanmar’s Military Struggles“, The Guardian, 31 January 2025.
[7] Vibhu Mishra, “Looming Famine in Rakhine Signals Wider Crisis in Myanmar“, United Nations News, 12 November 2024.
[8] Sreeparna Banerjee, “Arakan Army’s Growing Influence in Myanmar: Implications for the Rohingyas“, Observer Research Foundation, 24 January 2025.
[9] Sebastian Strangio, “Myanmar Announces Census as Prelude to Long-Delayed Election“, The Diplomat, 3 September 2024.
[10] “Census Report Volume (I)”, 2024 Population and Housing Census, Provisional Results, Department of Population, The Republic of the Union of Myanmar, December 2024.
[11] Shoon Naing and Devjyot Ghoshal, “Risk of Violence Escalates in Myanmar’s Civil War as Junta Flags Elections“, Reuters, 30 January 2025.
[12] “145 Townships Covered, 58 Uncounted in 2024 Myanmar Population Census“, The Nation, 3 January 2025.
[13] “Facing Territorial Losses and External Pressure, Myanmar’s Junta Plans Elections“, RANE, 10 February 2025.
[14] “Losing Count: Chaotic Census Kicks off“, Frontier Myanmar, 11 October 2024.
[15] “Joint Statement by International Election Experts and Organizations on Myanmar“, International IDEA, 6 February 2025.
[16] Danial Azhar, “ASEAN Tells Myanmar Junta Peace, Not Election, is Priority“, Reuters, 19 January 2025.
[17] “Are Russia, China, and India Supporting the Myanmar Junta’s Planned Elections?“, Myanmar Election Watch.
[18] Manny Maung, “Myanmar Junta Dissolves Political Parties“, Human Rights Watch, 29 March 2023.
[19] Ibid.
[20] “Myanmar’s Military Government Enacts New Political Party Law“, The Times of India, 27 January 2023.
[21] “Myanmar Junta Dissolves Suu Kyi’s Party As Election Deadline Passes“, CNN, 29 March 2023.
[22] Ye Myo Hein, “Understanding the People’s Defense Forces in Myanmar”, United States Institute of Peace, 3 November 2022.
[23] Naseer Ganai, “As Three Brotherhood Alliance Moves Forward in Myanmar, What Should Be India’s next Step?”, Outlook India, 27 November 2023.
[24] Yun Sun, “Operation 1027: Changing the Tides of the Myanmar Civil War?”, Brookings, 24 January 2024.
[25] Andrew Selth, “Three Years on from the Coup, What Could Help Myanmar’s Opposition Movement?“, Lowy Institute, 17 January 2024.
[26] Star Digital Report, “People of My Parents’ Age Are Being Killed”, The Daily Star, 30 January 2024.
[27] “Conflict Watchlist 2024, Myanmar: Resistance to the Military Junta Gains Momentum“, Armed Conflict Location and Event Data Project, 18 January 2024.
[28] International Federation for Human Rights, “Myanmar: 20,000 Political Prisoners Now Behind Bars – International Criminal Court Referral Urged“, ReliefWeb, 16 February 2024.
[29] “Myanmar: Four Years After Coup, World Must Demand Accountability for Atrocity Crimes“, Amnesty International, 31 January 2025.
[30] Ibid.
[31] “Myanmar Emergency – UNHCR Regional Update – October 2023”, UNHCR Operational Data Portal.
[32] “Myanmar Resistance Claims It Holds 60% of Territory“, Bangkok Post, 29 September 2023; “The Military Dictatorship Controls Less Than 50% of Myanmar”, The Economist, 16 May 2024; Ophelia Yumlembam, “As Myanmar’s Resistance Makes Headway, India Should Reconsider Its Realpolitik Strategy“, South Asian Voices, 26 August 2024; Yun Sun, “Operation 1027: Changing the Tides of the Myanmar Civil War?”, Brookings, 24 January 2024.
[33] “Myanmar Resistance Forces Make Territorial Advances”, Mizzima, 25 August 2024.
[34] Ye Myo Hein and Billy Ford, “The Myanmar Military’s Institutional Resilience”, United States Institute of Peace, 2 October 2024.
[35] Rebecca Ratcliffe, “Four Years After the Coup, Chaos Reigns as Myanmar’s Military Struggles“, The Guardian, 31 January 2025.
[36] “Myanmar Junta Losing Ground to Rebel Forces as Civil War Enters 5th Year“, Firstpost, 31 January 2025.
[37] Rebecca Ratcliffe, “Four Years After the Coup, Chaos Reigns as Myanmar’s Military Struggles“, no. 38.
[38] “Myanmar Military, Minority Armed Group Agree Ceasefire, China Says“, The Hindu, 21 January 2025.
[39] “Armed Group Says It Takes Control of Myanmar Rare Earth Mining Hub“, Voice of America, 23 October 2024.
[40] Saw Kyaw Zin Khay, Indra Overland and Roman Vakulchuk, “Road through a Broken Place: The BRI in Post-Coup Myanmar”, The Pacific Review, October 2024, pp. 1–25.
[41] Andrew Nachemson, “Myanmar’s Armed Groups and Democracy Activists are Joining Forces“, Foreign Policy, 15 July 2024.