17 अप्रैल 2023 की सोमवार ‘सुबह की बैठक ’ में, ओमप्रकाश दास, रिसर्च फेलो, मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान, ने “रणनीतिक संचार : सहमतियों का निर्माण और भारत (Strategic Communication: Manufacturing of Consent and India)” विषय पर एक व्याख्यान दिया। व्याख्यान की अध्यक्षता डॉ. राजीव नयन ने की और बैठक में मेजर जनरल (डॉ . ) बिपिन बख्शी (सेवानिवृत्त ) के साथ संस्थान के अन्य स्कॉलर्स की उपस्थित रहे ।
सामरिक – रणनीतिक हित सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं होते है, बल्कि यह सीमाओं से बहुत आगे तक जाते हैं। वैश्विक भू - राि में मनोवैज्ञानिक युद्ध या लोक राजनय की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश की जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में नैरेटिव (कथानक) का निर्माण तो होता ही है, लेकिन ये आगे जाकर "सूचना का शस्त्रीकरण " भी कर सकता है। ‘रणनीतिक संचार ’ एक विकसित होती हुई अवधारणा है, जिसकी संरचना अभी भी पूर्ण रूप से विकसित होने की प्रक्रिया में है। ‘रणनीतिक संचार ’ को भारतीय परिप्रेक्ष्य में समझें तो, भारत द्विपक्षीय और बहुपक्षीय कूटनीति और राजनय के जरिए एक व्यापक कथानक के निर्माण की कोशिश करता रहा है। इसमें भारत की ‘सॉफ्ट पावर ’ का भी एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है, जो भारत की विदेश नीति का ज़रूरी हिस्सा भी है। पिछले पांच सालों में व्यापक रूप से 'सहमतियों के निर्माण' की प्रक्रिया और उसके उपयोग को दक्षिण - पूर्व एशिया में देखा जा सकता है। एक बड़े स्तर पर, यहाँ मीडिया स्वामित्व की प्रकृति बदल रही है। साथ ही मीडिया की राजनीतिक - आर्थिक सरंचनाओं में भी बदलाव हो रहा है। जिसका उपयोग चीन विशेषकर अपनी ‘सॉफ्ट पावर ’ के विस्तार में करता रहा है, जो उसकी ‘रणनीतिक संचार ’ का ही हिस्सा है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में भी यह साफ़ दिखाई देता है कि कैसे मई 2020 के बाद से, चीनी मीडिया (जैसे ग्लोबल टाइम्स, चाइना डेली और शिन्हुआ) ने भारत पर भ्रमित करने वाले मीडिया सामग्रियों का हमला व्यापक रूप से बढ़ा दिया है।